गलतियों 5 : 1
स्वतंत्रता किसी भी निजी ज़िन्दगी का एक बहुत ही मत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय भाग है। आज के युग में स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति किसी भी जीवन का भाग बन चुकी है। कुछ दिन पहले मैंने इंटरनेट पे एक नार्थ कोरिया के लड़की की रोते हुए एक वीडियो देखा। उस वीडियो में लड़की रोते हुए नार्थ कोरिया की स्वतंत्रता के हनन होने की अपनी दर्दनाक जीवन का वर्णन कर रही थी। शायद उससे यह व्यक्त हो गया की स्वतंत्र जीवन ही कुशल जीवन की सीढ़ी है। स्वतंत्रता किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार है। आज भारत के अपनी स्वतंत्रता दिवस मना रही है। स्वतंत्र जीवन भारत के संविधान द्वारा प्रधान की हुई एक अधिकार है। भारत का इस सुन्दर संविधानिक ढांचे से हमें विभिन्न प्रकार की रोज की ज़िन्दगी में आवश्यक स्वतंत्रता के वाहन के रूप में अधिकार सम्मलित है। यह आज़ादी हमें बहुत ही मेहनत एवं बलिदान की एक बहुत अनुस्मरणीय गाथा से मिली है। प्रायोगिक स्वतंत्रता के साथ ही आत्मिक स्वतंत्रता का भी हमारे जीवन में एक अहम् स्थान है।
आत्मिक रूप में भी यह सवाल हमें हमारे जीवन के समक्ष पूछने की आवश्यकता है की क्या मै वाकई एक स्वत्रन्त्र जीवन का लाभार्थी हूँ। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ आत्मिक स्वतंत्रता की भूमिका किसी भी जीवन का अभिन्न भाग है। आखिर आत्मिक स्वत्रंत्रता की सही मायने में अर्थ क्या है ?
गलतियों 5 :1 – मसीह ने स्वतंत्रता के लिए हमें स्वतंत्र किया है; इसलिए इसमें स्थिर रहो, और दासत्व के जुए में फिर से न जूतों।
कृपया रेखांकित कीजिये की मसीह स्वतंत्र जीवन कभी दासत्व के जुए में नहीं फसता। आखिर इस स्वतंत्र जीवन में दासत्व कैसे बाधा बन सकती है और ऐसी क्या बाधा हमारे आत्मिक और आशीषित जीवन में खलल है इसको हमें समझना मत्वपूर्ण है ? निम्मलिखित कुछ बातें हमारी स्वतंत्रता में एक बाधा साबित हो सकती है :
1 . अविश्वास (मती 14:22 -33 ) : मसीही जीवन का आधार ही हमारे विश्वास की ढृढ़ता में टिका हुआ है। प्रभु यीशु मसीह पर एक अटूट विश्वास से ही असंभव कार्य संभव होते है। ऐसा एक असंभव लक्ष्य पतरस के सामने था। पानी पर चलना आज के युग में कोई सोच नहीं सकता और शायद कोई पूछ भी नहीं सकता । ऐसा अकाल्पनिक एवं अचंबित लक्ष्य है जल पर चलना। मनुष्य की सीमा उसे पानी जैसे पदार्थो पर चलने जैसे अकाल्पनिक कार्य से रोकता है। इस कड़ी में यीशु के समक्ष पतरस की गुहार थी पानी पर चलने की। यीशु पर विश्वास उसे पानी पर चलने जैसे अकाल्पनिक कार्य करने की एक कुंजी थी। (मती 14 : 29 )यीशु मसीह में पतरस को पानी पर चलने जैसी चुनौतीपूर्ण कार्य सभव था। जैसे इस भाग में पतरस की आखे यीशु पर टिकी थी तो वाकई वह पानी पे चलने लगा। चाहे हमारे सामने कोई भी चुनौती हो यीशु पर निगाहे हमें असंभव लक्ष्य में विश्वास से चलने की राह दिखाती है। पर दुखद की पतरस की निगाहे यीशु से हटके पानी में डूबने के अविश्वास में तब्दील हो गयी। आगे हम देखते है की किस प्रकार यीशु मसीह पतरस के विश्वास से सवाल पूछते है।
हमारे आत्मिक जीवन में भी अविश्वास का दासत्व हमें इसी मसीही स्वतंत्रता से वांछित रखता है। अकाल्पनिक लक्ष्य के सामने हमारे बोने विश्वास हमारे स्वतंत्र जीवन में दासत्व का जाल भीचा सकता है । विश्वास के ढह जाने से हमारे स्वतंत्र जीवन में पुनः हम दासत्व के जुए में फस जाते है। आज निश्चित कीजिये की हम अविश्वास को हावी नहीं होने देंगे एवं इस दासत्व से निकल के एक स्वतंत्र जीवन के लाभार्थी साबित होंगे।
2. डर (मती 14 : 30 )- स्वतंत्र मसीही जीवन को वांछित करने हेतु समाम्प्त करने का दूसरा चरण डर है। विश्वास से डर पर तब्दील होने पर हमारी मसीही आजादी में खलल पैदा होते है। जिस प्रकार यीशु से निगाहे हटके समुद्र की पानी की गहराई ने पतरस को डूबाने पर मजबूर किया उसी प्रकार ही हमारे भय के कारण हम गिर जाते है। कई बार हमारा ध्यान यीशु मसीह पर ना हो के हमारे जीवन की आँधियो पर टिकी रहती और भय के कारण डूबने के कगार पर होती है। हमारे जीवन में विभिन्न प्रकार के भय के दासत्व में हमारा जीवन ठिठुरता रहता है। पारिवारिक, मानसिक, व्यावसायिक, शारीरिक रूप के भय हमें इस स्वतंत्र जीवन की आशीषमय अनुभव से वांछित रखती है। स्वतंत्रता के इस पर्व में क्या हम भय पे जीत दर्ज कर हमारे जीवन में एक मसीही स्वतंत्रता के लिए हमें तैयार करे ?
3. पाप – पाप हमारे स्वतंत्र जीवन से पीछे धकेले जाने का एक बहुत ही कठोर कारण है। हमारे जीवन की अभिलाषाएं मसीही उद्देश्यपूर्ण एवं विजयपूर्ण जीवन से हमें वंचित रख कर पाप के दासत्वपुर्ण जीवन के अंधकार बंधक बनाने में बहुत सक्रीय कारण होता है। आदम और हौवा के भीतर जब पाप के दल दल से दूषित होने से पूर्व एक सुखद आज़ादी का भरपूर जीवन की गवाही देता है। पाप के चंगुल से हमें आज़ादी यीशु के बहुमूल्य लहू से मिला है। स्वतंत्र मसीही जीवन में पाप के कीचड़ में ना फसे। शैतान की युक्तियाँ इन पाप की अभिलाषाएं को हराने में यीशु मसीह द्वारा प्राप्त स्वतंत्र जीवन में ही संभव है।
यह समय है की हम अपनी गुलामी से निकल एक स्वतंत्र जीवनदायक यीशु की और देखे और छुड़ाने वाले यीशु द्वारा प्राप्त एक भरपूर एवं विजयी जीवन के गवाह बने। हृद्य के भीतर से दासत्व के जुए को निकाल के एक मसीह यीशु में स्वतंत्रतापूर्ण जीवन की लिए समर्पण करे।
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